इकना की रिपोर्ट के अनुसार, यह यूनिवर्सिटी सऊदी अरब की राजधानी रियाद में स्थित है, जिसकी स्थापना 1953 में एक धार्मिक शिक्षण संस्थान के रूप में हुई थी। धीरे-धीरे इसका विस्तार हुआ और 1974 में यह एक छोटे विश्वविद्यालय के रूप में परिवर्तित हो गया। 5 जनवरी 1982 को राजा खालिद बिन अब्दुलअज़ीज़ के शासनकाल में इसका मुख्य ढाँचा तैयार हुआ और 1990 तक यह पूर्ण रूप से विकसित हो गया। इस यूनिवर्सिटी की सऊदी अरब में 65 शाखाएँ हैं और जापान, इंडोनेशिया व जिबूती में 3 अंतरराष्ट्रीय शाखाएँ भी मौजूद हैं।
इस यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में लगभग 9,000 मूल हस्तलिखित पांडुलिपियाँ हैं, जिन्हें विदेशों से खरीदा गया है या फिर विद्वानों, राजकुमारों और बुद्धिजीवियों द्वारा दान किया गया है।
इसकेअलावा, 15,000 माइक्रोफिल्म पर डिजिटल छवियों वाली पांडुलिपियाँ भी यहाँ संरक्षित हैं।
यहाँ मौजूद माइक्रोफिल्म में 500 से अधिक पांडुलिपियों की छवियाँ संग्रहित हैं।
विशेषताएँ:
इस लाइब्रेरी में कुछ ऐसी इस्लामिक पांडुलिपियाँ हैं, जो दुनिया में कहीं और नहीं मिलतीं। उदाहरण के लिए, सहीह बुखारी की एक दुर्लभ प्रति यहाँ मौजूद है, जो मिस्र, सीरिया, मोरक्को या अन्य देशों की किसी भी लाइब्रेरी में नहीं है।
यहाँ की पांडुलिपियों को डिजिटल रूप में संरक्षित किया गया है, जिससे शोधकर्ता आसानी से इनका अध्ययन कर सकते हैं।
ऑनलाइन एक्सेस:
कोई भी शोधकर्ता यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर जाकर लाइब्रेरी कैटलॉग खोज सकता है। वे लेखक के नाम या विषय के आधार पर किताबें ढूँढ सकते हैं और अपने शोध कार्य में उनका उपयोग कर सकते हैं।
इस प्रकार, यह यूनिवर्सिटी इस्लामिक ज्ञान और दुर्लभ पांडुलिपियों का एक महत्वपूर्ण केंद्र है, जो डिजिटल तकनीक के माध्यम से इन्हें सुरक्षित रखने और शोधकर्ताओं के लिए सुलभ बनाने का कार्य कर रही है।
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